जांजगीर चांपा संवाददाता – राजेन्द्र जायसवाल
शनि देव दक्ष प्रजापति की पुत्री संज्ञा देवी और सूर्य देव के पुत्र है यह नव ग्रहों में सबसे अधिक भयभीत करने वाला ग्रह है। इसका प्रभाव एक राशि पर ढाई वर्ष और साढें साती के रूप में लंबी अवधि तक बनी रहती है। किन्तु न्याय के देवता शनि देव प्रसन्न होने पर मनुष्य को धन-धान्य एवं सुख शांति से परिपूर्ण कर देते हैं।
प्राचीन मान्यता है की शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए हर शनिवार को शनि देव को तेल चढ़ाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करते है उन्हें साढ़ेसाती और ढैय्या में भी शनि की कृपा प्राप्त होती है।
शनि देव को तेल क्यों अर्पित करते हैं हैं?
इसको लेकर हमारे ग्रंथो में अनेक कथाएं विद्यमान है। इनमे से सर्वाधिक प्रचलित कथा का संबंध रामायण काल और हनुमानजी से है।
इस संबंध में आनंद रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता है। जब भगवान् राम की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवनसुत हनुमान को उसकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई। जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्वक कहा-‘हे वानर ! मैं देवताओं में शक्तिशाली शनि हूं। सुना है, तुम बहुत बलशाली हो। आंखें खोलो और मुझसे युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूं।’ इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा-‘इस समय में अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूँ। आप मेरी पूजा में विघ्न मत डालिए। आप मेरे आदरणीय कृपा करके यहां से चले जाइए।
जब शनि लड़ने पर ही उतर आए, तो हनुमान ने शनि को अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उसे कसना प्रारंभ कर दिया। जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान जी ने फिर सेतु की परिक्रमा शुरू कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरों पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहूलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई। तब शनिदेव ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि मुझे बंधन मुक्त कर दीजिए मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूं। फिर मुझसे ऐसी गलती नहीं होगी।
इस पर हनुमान जी बोले-मैं तुम्हें तभी छोडूंगा, जब तुम मुझे वचन दोगे कि प्रभु श्रीराम एवं मेरे भक्तों को कभी परेशान नहीं करोगे। यदि तुमने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा।’ शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा-मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्रीराम के भक्त को परेशान नहीं करूंगा। आप मुझे छोड़ दें। तब हनुमान ने शनिदेव को छोड़ दिया। फिर हनुमान जी से शनिदेव ने अपने घावों की पीड़ा मिटाने के लिए तेल मांगा। हनुमानजी ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनिदेव की पीड़ा मिट गई। उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ता है, जिससे उनकी पीड़ा शांत हो जाती है और वे प्रसन्न हो जाते हैं।
शनि को तेल अर्पित करते समय ध्यान रखें ये बात-
शनि देव की प्रतिमा को तेल चढ़ाने से पहले तेल में अपना चेहरा अवश्य देखें। ऐसा करने पर शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है। धन संबंधी कार्यों में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं और सुख-समृद्धि बनी रहती है और समस्त परेशानियां दूर हो जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर के सभी अंगों में अलग-अलग ग्रहों का वास होता है। यानी अलग-अलग अंगों के कारक ग्रह अलग-अलग हैं। शनिदेव त्वचा, दांत, कान, हड्डियां और घुटनों के कारक ग्रह हैं। यदि कुंडली में शनि अशुभ हो तो इन अंगों से संबंधित परेशानियां व्यक्ति को झेलना पड़ती हैं। इन अंगों की विशेष देखभाल के लिए हर शनिवार तेल मालिश की जानी चाहिए।मालिश करने के लिए सरसों के तेल का उपयोग करना श्रेष्ठ रहता हैं। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए ऊं शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप भी करना चाहिए। साथ ही कालें वस्तुओं का दान भी करना चाहिए।
रविन्द्र द्विवेदी
शिक्षक एवं साहित्यकार चांपा
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