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बेटी ही नहीं बल्कि बेटों को भी जरुर सिखाएं ये खास बातें..

सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चों को अच्छी परवरिश मिले और वे अच्छी चीजें सीखें। भारतीय पेरेंट्स के लिए भी यह बात बहुत मायने रखती है कि उनके बच्चे समय से अपनी जिम्मेदारी समझ लें और अपने पैरों पर खड़ा हो सकें। हालांकि, लड़कियों और लड़कों को पढ़ने-लिखने, करियर बनाने और फाइनेंशियली इंडिपेडेंट बनने में मदद करने के लिए मां-बाप अपने अनुभव के आधार पर बहुत-सी टिप्स देते हैं। लेकिन, वहीं लड़कों को कुछ ऐसी बातें सिखाना भी जरूरी हैं जो उन्हें जिंदगी के हर दौर में कॉन्फिडेंट रहने में मदद करती हैं। वैसे इनमें से ज्यादातर बातें ऐसी हैं जो आमतौर पर लड़कियों को तो सिखायी जाती हैं लेकिन, इन्हें लड़कों को सिखाने का ख्याल मां-बाप को नहीं आते। यहां इस लेख में पढ़ें आप कुछ ऐसी ही लाइफ वैल्यूज़ और आदतों के बारे में जो लड़के और लड़कियों, दोनों को सिखानी चाहिए।

​रसोई का काम

भारतीय घरों में ये धारणा है कि रसोई का काम सिर्फ लड़कियां करती हैं। ये सोचना गलत है क्‍योंकि रसोई में पका खाना लड़के और लड़कियां दोनों खाते हैं तो फिर काम एक क्‍यों करे। वहीं, आज के समय में लड़कों काे भी खाना बनाना आना चाहिए। अपने बेटे को घर के छोटे-मोटे कामों में हाथ बंटाना सिखाएं।

जिम्मेदारियां दें

अक्सर माता घर के कामों में बेटी की मदद लेती हैं। बेटियों को समझदार होते ही घर परिवार की जिम्मेदारियां सिखाना शुरू कर दिया जाता है। हालांकि लड़कों को यह सीख कम ही दी जाती है। जब तक बहुत जरूरत न हो, बेटे घर के या रसोई के कामों में माता का हाथ नहीं बंटाते हैं।इस कारण जब वह बड़े होते हैं तो उन्हें लगता है कि घर के काम उनकी नहीं बल्कि महिलाओं की जिम्मेदारी है। बेटों को गृहस्थी के काम की इज्जत नहीं होती और न ही उस काम को करने वाली अपनी मां, बहन व पत्नी के प्रति सम्मान होता है। इसलिए बचपन से बेटों को जिम्मेदारी दें, घर के कामों में उनकी मदद लें।

महिलाओं का सम्‍मान

ये तो सबसे अहम सीख है जो हर मां बचपन से अपने बेटे को देनी चाहिए। यदि घर पर मां ही बेटों को महिलाओं का सम्‍मान करना सिखाएगी तो लड़के बहुत जल्‍दी इस बात को समझ पाएंगे। इससे आपका बेटा न केवल अपनी पत्‍नी और दोस्‍त बल्कि आपका और आपके परिवार की हर स्‍त्री का आदर करेगा।

भावनाएं व्यक्त करना सिखाएं

‘लड़के रोते नहीं, कमजोर हो क्या, लड़कियों की तरह डर क्यों रहे हो’ आदि बाते बोलकर अक्सर बेटे को उनकी भावनाएं व्यक्त करने से रोका जाता है। बचपन से बेटे को सिखाते हैं कि रोना, डरना कमजोरी है। उसे महसूस कराया जाता है कि यह कमजोरी बेटी में हो सकती है लेकिन बेटे में नहीं। बचपन में लड़के को भावनाएं दबाना सिखाकर माता पिता उन्हें कठोर बना देते हैं। इस तरह की सीख उन्हें दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए प्रेरित करती है। वह इमोशनली स्ट्रॉन्ग नहीं बनते बल्कि भावनात्मक रूप से बिगड़ जाते हैं। बेटों को दर्द या दुख जाहिर करने पर रोके नहीं, बल्कि अपनी भावनाएं व्यक्त करना सिखाएं। इस से वह दूसरों की भावनाओं की भी कद्र करेंगे और किसी दूसरे के रोने या दुख को महसूस कर पाएंगे।

News36garh Reporter

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