जांजगीर-चांपा संवाददाता – राजेन्द्र जायसवाल
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
गुरु का स्थान भारतीय संस्कृति में अत्यंत उच्च है।गुरु का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु ईश्वर का वह दिव्य स्वरूप होता है जो हमें ज्ञान की राह दिखाता है, हमें सही और गलत का भेद समझाता है और हमारे भीतर छुपे हुए संभावनाओं को जागृत करता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर के समान माना गया है, क्योंकि वह हमें अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है।
गुरु का अर्थ और महत्व-
‘गुरु’ शब्द संस्कृत के ‘गु’ और ‘रु’ से मिलकर बना है। ‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है प्रकाश। अर्थात, गुरु वह है जो अज्ञानता के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है।
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णुः गुरु देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु महेश्वर हैं। गुरु साक्षात् परब्रह्म हैं, उन श्री गुरु को नमस्कार।
प्राचीन काल से ही भारत में गुरु-शिष्य परंपरा चली आ रही है। यह परंपरा केवल ज्ञान प्राप्त करने का साधन नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला भी सिखाती है। महर्षि व्यास, महर्षि वाल्मीकि, गुरु वशिष्ठ, और स्वामी विवेकानंद जैसे अनेक महान गुरुओं ने हमारे समाज को दिशा दिखाई है।
गुरु की भूमिका केवल शिक्षा देने तक सीमित नहीं है। वह हमारे चरित्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गुरु हमें नैतिकता, आदर्शों और मूल्यों का पाठ पढ़ाता है। वह हमें आत्मनिर्भर बनाता है, हमारी आत्मविश्वास को बढ़ाता है और हमें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफल होने के लिए प्रेरित करता है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हमें अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
गुरु की महिमा का वर्णन शब्दों में करना कठिन है। वह हमारे जीवन का पथप्रदर्शक होता है, जो हमें सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। गुरु का सम्मान और उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करना हमारा कर्तव्य है। केवल गुरु के आशीर्वाद से ही हम जीवन में सच्ची सफलता और संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं।
गुरु की महिमा अपरंपार है और उनकी कृपा से ही हम जीवन की हर कठिनाई का सामना कर सकते हैं।
यह तन विष की बेलरी
गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिलें
तो भी सस्ता जान।।
गुरु की महिमा को शब्दों में समेटना कठिन है परंतु उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करना हमारा परम कर्तव्य है। आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर परम आराध्य जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी के पावन चरणों में साष्टांग प्रणाम। आप सभी को गुरु पूर्णिमा/ व्यास पूर्णिमा की अनवरत बधाई एवं शुभकामनाएं।
रविन्द्र द्विवेदी
शिक्षक एवं साहित्यकार
चांपा जांजगीर-चांपा छग
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