विविध

राम की नर-लीला ; जब श्री राम जी एक आम व्यक्ति की तरह विलाप व् शोक करते हुए दिखे ; लक्ष्मण की मूर्छा पर विलाप के बाद श्री राम की मौन प्रतिज्ञा: आयुष सिंह चंदेल

दुखद यामिनी की नीरवता
अन्तर्मन आहत करती थी ।
हनुमत के जल्दी आने की
विह्वल सी चाहत भरती थी ।

अनुज शीश लेकर गोदी में
दयासिंधु ! आहें भरते थे ।
था कपीश पर पूर्ण भरोसा
पर अनहोनी से डरते थे ।

लंका तट पर महा उदधि की
लहरों का गर्जन होता था ।
काल रात्रि के सन्नाटे में
रामादल चुप चुप रोता था ।

उस मनहूस निशा का पल भी
सदियों सा विस्तार लिया था ।
करूणा के सागर ने जिसमें
रह रह करूण विलाप किया था ।

ज्यों ज्यों रजनी बीत रही थी
उर अधीर हो चला राम का ।
नभ को नयन निहार रहे थे
मन विचलित था पूर्णकाम का ।

अश्रु आँख के सूख चले थे
मन में झंझावात विकट था।
क्षण प्रति क्षण बढ़ रही विकलता
उषाकाल का पहर निकट था ।

चिन्तातुर थी पूरी सेना
रघुनंदन मन मौन पड़ा था ।
उथल-पुथल थी उर में प्रभु के
अनुज शीश पर काल खड़ा था ।

अंजनि सुत से आस प्रबल थी
फिर भी धीरज डोल रहा था ।
मर्यादा के शिखर पुरूष का
भ्रातृ प्रेम मन तोल रहा था ।

शंका कहीं अंजनी नंदन
भेषज बूटी पा न सके ।
या दुर्गम पथ बाधा में बँध
नियत समय पर आ न सके ।

असमंजस में दशरथ नंदन
सोच रहे थे अपने मन में ।
यदि मैंने खो दिया लखन को
शेष रहेगा क्या जीवन में ?

सौ सौ प्रश्न उठेंगे मुझ पर
हर युग मुझको धिक्कारेगा ।
रावण लंका सब कुछ जीतूँ
पर मेरा सब यश हारेगा ।

राघव ने मंथन कर गहरा
एक प्रतिज्ञा मन धारी ।
यदि प्रतिकूल हुए पल प्रातः
राम कोप होगा भारी ।

मुख मंडल फिर देख लखन का
पार्श्व रखा कोदण्ड निहारा ।
यदि सौमित्र न सजग हुआ तो
ताण्डव देखेगा जग सारा ।

अब तक मर्यादा बस देखीं
कल प्रत्यंचा टंकारेगी ।
मात्र दशानन कुल न मिटेगा
कुल असुरों को संहारेगी ।

मेघनाद से दशकन्धर तक
कृमि कीटों से तड़प जलेंगे ।
कल ही सकल दानवी दल के
कुकृत्यों के पाप फलेंगे ।

लंका का अस्तित्व मेंट कर
धरणी असुर रहित कर दूँगा ।
आग लगा दूँगा वारिध को
कल त्रिलोक विस्मित कर दूँगा ।

यदि रघुकुल का सूर्य बुझा तो
मैं दिनकर का मान हरूँगा ।
धरा क्षितिज सब डोल उठेंगे
शर से वह संधान करूँगा ।

त्राहिमाम होगा रिपु दल में
रौद्र रूप आक्रान्त धरूँगा ।
क्रोध ज्वाल की विकट लपट सा
काल क्षुधा को शान्त करूँगा ।

जो अब तक देखा न जगत ने
युद्ध प्रचंड प्रबल होगा।
नील गगन तक रूधिर उड़ेगा
जलधि शुष्क निर्जल होगा ।

रण चण्डी के चीत्कार का
अम्बर तक क्रंदन होगा ।
थल से नभ तक मात्र राम के
बाणों का गर्जन होगा ।

प्रतिकार भ्रात के प्राणों का
बस दशरथ सुत का प्रण होगा ।
युग – युग तक दृष्टांत बने
लंका में कल वह रण होगा ।

 

 

यामिनी – रात्रि
नीरवता – शांति
विह्वल विकल
उदधि – सागर
रजनी – रात्रि
भेषज – औषधि
कोदण्ड – धनुष
रिपु (दल) – शत्रु
जलधी – महा सागर
क्रंदन – कराहपूर्ण विलाप

 

आयुष सिंह (नौसिखिया कवि)

News36garh Reporter

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