संवाददाता – रवि परिहार
दैवज्ञ पंडित रमेश शर्मा संस्थापक मंगला गौरी मंदिर धाम एवम शंकराचार्य आश्रम पोंडी रतनपुर से जानिए रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि –
भाई-बहन के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन 19 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा। ज्योतिष के अनुसार, सालों बाद इस रक्षाबंधन पर 7 शुभ योग का संयोग बन रहा है। 19 अगस्त को रवि योग, शश राजयोग, शोभन योग, बुधादित्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, शुक्रादित्य योग, और लक्ष्मी नारायण योग बनने जा रहे हैं। इसके साथ ही सावन आखिरी सोमवार और सावन की पूर्णिमा का भी संयोग रहेगा। शनि अपनी स्वराशि कुंभ में रहेंगे तो सूर्य अपनी स्वराशि सिंह में रहेंगे। रक्षाबंधन जितना विशेष है, उतना ही विशेष है रक्षाबंधन का समय व मुहूर्त भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भद्रा काल में राखी बांधना निषेध है। इस काल में रक्षाबंधन को अशुभ और अकल्याणकारी बताया गया है। पंचांग के अनुसार, 19 अगस्त को दोहपर 1.32 बजे तक भद्राकाल है। इसलिए सोमवार को 1.32 बजे के बाद ही रक्षा बंधन मनाया जाएगा।
कब तक बंधेगी राखी?
रक्षाबंधन का पर्व दोपहर बाद शुरू होकर शुभ मुहूर्त रात 12.28 बजे तक रहेगा। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा 19 अगस्त दिन सोमवार को रात्रि 12.28 बजे तक है। रविवार की रात 2.21 बजे से सोमवार को दिन 1.25 बजे तक भद्रा है। अतः भद्रा के बाद ही रक्षांबधन का पुनीत पर्व मनाया जायेगा, क्यों कि भद्रा काल में रक्षाबन्धन का पुनीत पर्व वर्जित है। जैसे …भद्रायाम् द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा भद्रा में श्रावणी (उपाकर्म रक्षाबन्धन) व होलिका दहन नहीं होता, चाहे वह कहीं की भी भद्रा हो। अतः जब सोमवार की दोपहर 1.25 बजे के बाद ही रक्षाबन्धन का पुनीत पर्व मनाया जाना शुभ है। दैवज्ञ पण्डित रमेश शर्मा
राखी बांधते समय ये मंत्र जरूर पढ़ें-
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामभि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।
विधि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राखी बंधवाते समय भाई का मुख पूरब दिशा में और बहन का पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
सबसे पहले बहनें अपने भाई को रोली, अक्षत का टीका लगाएं।
घी के दीपक से आरती उतारें, उसके बाद मिष्ठान खिलाकर भाई के दाहिने कलाई पर राखी बांधें।
रक्षाबंधन की पौराणिक कथा…
धार्मिक कथाओं के अनुसार जब राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली थी। राजा ने तीन पग धरती देने के लिए हां बोल दिया था। राजा के हां बोलते ही भगवान विष्णु ने आकार बढ़ा कर लिया है और तीन पग में ही पूरी धरती नाप ली है और राजा बलि को रहने के लिए पाताल लोक दे दिया।
तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा कि भगवन मैं जब भी देखूं तो सिर्फ आपको ही देखूं। सोते जागते हर क्षण मैं आपको ही देखना चाहता हूं। भगवान ने राजा बलि को ये वरदान दे दिया और राजा के साथ पाताल लोक में ही रहने लगे।
भगवान विष्णु के राजा के साथ रहने की वजह से माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं और नारद जी को सारी बात बताई। तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय बताया। नारद जी ने माता लक्ष्मी से कहा कि आप राजा बलि को अपना भाई बना लिजिए और भगवान विष्णु को मांग लिजिए।
नारद जी की बात सुनकर माता लक्ष्मी राजा बलि के पास भेष बदलकर गईं और उनके पास जाते ही रोने लगीं। राजा बलि ने जब माता लक्ष्मी से रोने का कारण पूछा तो मां ने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है इसलिए वो रो रही हैं। राजा ने मां की बात सुनकर कहा कि आज से मैं आपका भाई हूं। माता लक्ष्मी ने तब राजा बलि को राखी बांधी और उनके भगवान विष्णु को मांग लिया है। ऐसा माना जाता है कि तभी से भाई- बहन का यह पावन पर्व मनाया जाता है।
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