भारत में वैसे तो कई पवित्र स्थल है जहाँ पिंड दान करने का विशेष फल मिलता है, लेकिन बिहार का गया जिला इनमे प्रमुख माना जाता है l गया क्षेत्र को पितृ तीर्थ, गयापुरी व गया जी भी कहा जाता है l गया जी के महत्व का उल्लेख रामायण व महाभारत दोनों में मिलता है l देश विदेश से लोग यहाँ अपने पूर्वजों के पिंड दान के लिए आते है l
फल्गु नदी जिसे भगवान विष्णु का अवतार कहा जाता है, के तट पर किया गया पिंडदान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति गयाजी जाकर पिंडदान करता है वो हमेशा के लिए पितृऋण से मुक्त हो जाता है. इसके बाद उसे श्राद्ध करने की जरूरत नहीं रह जाती. पुराणों में कहा गया है कि गया में माता सीता ने फल्गु नदी के बालू से पिंड दान किया था l राजा राम ने यहां अपने पिता के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण किया और उनकी आत्मा के लिए शांति की प्रार्थना की थी. इतना ही नहीं महाभारत काल में पांडवों ने भी यहां अपने पितरों का पिंडदान करके उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना की थी.
मान्यता है कि गया जी में पिंडदान करने से 108 कुलों और 7 पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है और सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इससे उन्हें स्वर्ग में जगह मिलती है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहां पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं। इसलिए उन्हें पितृ तीर्थ भी कहा जाता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा यमलोक की यात्रा करती है और इस दौरान उसे बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता है. पिंडदान और श्राद्ध के माध्यम से आत्मा को इस कष्ट से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष की ओर बढ़ने में सहायता मिलती है. गरुड़ पुराण के मुताबिक, आत्मा को पुर्नजन्म में 40 दिन का समय लगता है. कहा जाता है माता पिता का ऋण सबसे बड़ा होता है, पिंडदान करने से “पितृ ऋण” से मुक्ति मिलती है और पितरों को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है l
गया जी में पिंडदान करने के बाद जब कोई व्यक्ति घर आता है तो उसे सत्यनारायण कथा पढ़नी या सुननी चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु के नाम पर गरीब ब्राह्मणों और उनके परिवारों को भोजन कराना चाहिए। इसके बाद ही श्राद्ध पूर्ण माना जाता है और इसके लाभकारी परिणाम सामने आते हैं।
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