बाबा विश्वनाथ और माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी, मोक्षदायिनी गंगा माता के तट पर बसा भारत का सबसे पुराना नगर काशी l वायुपुराण (104.75) के अनुसार भगवान् शिव के जगत प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री विश्वेश्वर की प्रतिष्ठा यहीं काशी में है। इन्हें ही काशी विश्वनाथ के नाम से लोग जानते हैं।
काशी नगरी भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्यारी है। मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान् शिव ने माता पार्वती को बताया है कि मैं कभी इस क्षेत्र को कभी नहीं त्यागता, इसलिए इस क्षेत्र को ‘अविमुक्त’ क्षेत्र कहते हैं। ये वो तीर्थ है जिसके बारे में लोक आस्था है कि, यहां के कण-कण में भगवान शिव का वास है और प्रलयकाल में भी इसका विनाश नहीं होता।
विमुक्तं न माया यस्मान्मोक्ष्यते वा कदाचना।
महत् क्षेत्रमिदं तस्मादविमुक्तमिदं स्मृतम्। (मत्स्य पुराण 180.54)
काशी में अग्नि संस्कार, अस्थि विसर्जन, तर्पण व पिंडदान का महत्त्व सबसे अधिक है l यहाँ श्राद्ध प्राप्त करने वाले पितरों को जन्म मरन के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और गंगा जी में विसर्जन से मोक्ष प्राप्त होता है l काशी के पिशाच मोचन घाट पर अकाल मृत्य को प्राप्त हुए पितरों व जिनके मृत्यु की तिथि का पता ना हो उनका श्राद्ध सबसे अधिक किया जात है l माना जाता है यहाँ श्राद्ध करने से पिशाच योनी से मुक्ति मिलती है l
शास्त्रों में कहा जाता है कि काशी में यदि श्राद्ध नहीं किया तो, गया का श्राद्ध स्वीकार नहीं होता। यानी की पितृ शांत नहीं होते। पितरों की मुक्ति के लिए पिशाच मोच तीर्थ पर कुल 12 तरह के श्राद्ध कराए जा रहे हैं। नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिंडन, पार्वण, शुद्धय्र्थ, कामांग, दैविक, औपचारिक और सांवत्सरिक हैं।
कर्मकांड के बाद सभी पिंडदानी 84 लाख योनियों से मुक्ति के प्रतीक, 84 तरह के दान और 84 तरह की दक्षिणा अर्पण का भी संकल्प लेते हैं। यहां लोग वस्त्र, अन्न, जल, तेल, छाया, गऊ, शैय्या, सोना, रजत आदि का दान भी करते हैं।
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