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अद्भुत है मां महामाया की महिमा…यहां देवी की इच्छा से हुआ था मंदिर निर्माण!

विमल सोनी

बिलासपुर के नगोई में महामाया का प्रसिद्ध मंदिर है. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर का रोचक इतिहास भी है. लोगों का कहना है कि मां की इच्छा से ही रतनपुर के राजा ने इस मंदिर को बनवाया था

बिलासपुर:

वैसे तो देवी मंदिरों के स्थापना से जुड़े हुए कई किस्से, कहानी और मान्यताएं हैं, लेकिन बिलासपुर के बैमा नगोई में स्थित महामाया माता का मंदिर इस दृष्टि से बेहद खास है. यहां मंदिर के स्थापना से एक खास कहानी जुड़ी हुई है. वैसे तो यह मंदिर 12वीं शताब्दी में रतनपुर के राजा द्वारा बनाया गया था, लेकिन माता की स्थापना से जुड़ी एक बात इस मंदिर को खास बनाती है.

मान्यता के अनुसार, राजा अपने रथ में माता महामाया की मूर्ति को मल्हार से रतनपुर लेकर जा रहे थे. इस बीच बैमा नगोई में राजा के रथ का एक पहिया टूट गया. पहिया बदलते देर रात हो गई और राजा ने वहीं विश्राम करने का निर्णय लिया. तभी माता ने राजा को स्वप्न में कहा की उनके मंदिर की स्थापना इसी जगह पर कर दी जाए. इस तरह से यहां महामाया मंदिर की स्थापना हो गई.

क्षेत्र के रेहवसीयों में मां महामाया को लेकर बड़ी आस्था है. आसपास के क्षेत्र के रहने वालों का मानना है कि यहां विराजमान मां महामाया साक्षात सरस्वती का रूप हैं. जिसके चलते पुराने समय से ही गांव में बड़ी संख्या में साक्षरता दर अच्छी रही है. नजदीक के रहवासियों के अलावा दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं.

प्राकृतिक छटा को समेटे हुए है मंदिर प्रांगण

नगोई का यह महामाया मंदिर प्रांगण अपने आप में बेहद सुंदर है. चारों ओर हरियाली और बड़े घने वृक्ष की छाया हर समय मंदिर को कड़क धूप से बचाती है और ठंडक प्रदान करती है. आस पास बड़े वृक्ष और कई तालाब होने के कारण यहां का वातावरण भी मनमोहक बना रहता है.

आदिशक्ति महामाया धाम का गौरवशाली इतिहास

बिलासपुर नगर की गोद में बसा ऐतिहासिक ग्राम नगोई अपने गर्भ में अध्यात्म और इतिहास के अनेक रहस्यों की कहानी कहती है. मंदिरों, तालाबों और कुछ भग्नावशेषों को समेटे इसकी प्राचीनता एवं अस्मिता की अनेक किवदंतियां भी बुजुर्गों से सुनने को मिलती हैं. मंदिरों, तालाबों से परिपूर्ण इस गांव में अध्यात्म की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण 12 वीं शताब्दी में निर्मित मां महामाया का मंदिर है. नगोई के रहने वाले बृजेश शास्त्री बताते हैं कि नगोई को प्राचीन काल में रतनपुर राज्य की उप राजधानी के रूप में नवगई के नाम से बसाया गया था. जिसका नाम कालांतर में बदलते हुए नौगई तथा वर्तमान में नगोई हो गया.

अपने ही परिजनों को दिया श्राप

कुछ प्रमाणित तथ्यों व ग्राम के वरिष्ठजनों के अनुसार रतनपुर की उप राजधानी नगोई में महामाया मंदिर की स्थापना रतनपुर राज्य के विद्वान आचार्य स्व. तेजनाथ शास्त्री के पुत्र स्व. सीताराम शास्त्री द्वारा रतनपुर नरेश के सहयोग से कराया गया था. ऐसी लोक कहानियां हैं कि अपने निष्पक्ष न्याय प्रिय होने के कारण शास्त्री ने अपने परिजन को इसलिए श्राप दे दिया था क्योंकि उन्होंने एक तालाब के पैटू का व्यक्तिगत स्वार्थ में उपयोग किया.

संत गिरनारी बाबा के आगमन से जी उठा मंदिर

मां का ये आंगन कुछ वर्ष पूर्व तक ग्रामीणों की उदासीनता के कारण सुनसान हो चला था. उस वक़्त माता भक्त संत गिरनारी बाबा (जूना अखाड़ा) का आगमन रतनपुर होते हुए नगोई में हुआ. तब से उनके अनन्य भक्ति, अथक सेवा व ग्रामीणों में अध्यात्म के नव जागरण से मंदिर का कायाकल्प किया हुआ. संत गिरनारी बाबा के 2010 में ब्रह्मलीन होने के पश्चात मंदिर की व्यवस्था श्री आदिशक्ति महामाया धाम सेवा समिति (ट्रस्ट) द्वारा किया जा रहा है.

News36garh Reporter

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