चर्चा में

महान तत्वज्ञानी, साहित्यसृष्टा, राष्ट्र धर्मी, सरस्वती पुत्र महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी।

जांजगीर चांपा संवाददाता – राजेंद्र जायसवाल

बसंत पंचमी जन्म जयंती पर विशेष आलेख। रविंद्र कुमार द्विवेदी

जिला जांजगीर चांपा महात्मा कबीर के बाद हिंदी साहित्य जगत में यदि किसी मस्तमौला और निर्भीक कवि का जन्म हुआ तो वह थे महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी।
निराले व्यक्तित्व की गरिमा से मंडित कविश्रेष्ठ निराला का जन्म बंगाल प्रांत के मेदिनीपुर जिले की महिषादल नामक रियासत में 28 फरवरी सन 1899 ईस्वी में हुआ था।

मुक्त छंद के महान प्रवर्तक महाकवि निराला के पिता का नाम पंडित राम सहाय त्रिपाठी था तथा इनकी माता जी के नाम का कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है।सूर्यकांत त्रिपाठी जी के माताजी सूर्य का व्रत रखती थी तथा रविवार को ही निराला जी का जन्म हुआ था अतः बचपन का नाम सूर्यकुमार रखा गया। बाद में इनका यही नाम सूर्यकांत हो गया और उनके अनोखे, निराले स्वभाव के कारण लोग इन्हें निराला करने लगे इसी कारण इनका नाम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हो गया।
निराला जी की प्रारंभिक स्कूली शिक्षा नवे दर्जे तक ही हुई थी, किंतु स्वयं के अध्ययन में उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, बंगला एवं संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। संगीत कला में उनकी अच्छी अभिरुचि थी।
निराला जी का विवाह 13 वर्ष की अल्पायु में मनोहरा देवी से कर दिया गया। मनोहरा देवी अधिक दिनों तक कवि पति का साथ ना दे सकी और स्वर्ग सिधार गई।मात्र 20 वर्ष की आयु में निराला जी विधुर हो गए।
वाणी के वीर पुत्र निराला जीवन भर अपने काव्य सृजन को भव्यता वेदना अनुराग से भरते रहे, उसमें रंग और सुगंध है। आसक्ती और आनंद के झरनों का संगीत है तथा अनासक्ति एवं विषाद का स्वर भी है।
निराला जी ने छंद मुक्त रचनाओं के माध्यम से एक नए शिल्प का सूत्रपात किया। छंद मुक्त कविताओं के सूत्रधार निराला जी ही थे। निसंदेह वे एक ऐसे युग प्रवर्तक साहित्यसृष्टा थे जिन्होंने युगों से बहती हवा के रुख को मोड़ दिया।
निराला जी हिंदी साहित्य के युग प्रतिनिधि कवि थे वह रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद एवं रविंद्र नाथ टैगोर से बहुत प्रभावित थे। वास्तव में निराला जी राष्ट्रधर्मी महा कवि थे।

निराला जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे उन्होंने सन 1916 ईस्वी में प्रकाशित अपनी रचना ‘जूही की कली’ से हिंदी साहित्य जगत में अनुप्रवेश किया। इसके बाद वे सतत काव्य रचना में संलग्न रहे। उनकी अनेक रचनाओं का हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान है। अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते उनके महत्वपूर्ण काव्य रचना है। प्रयाग में रहते हुए निराला जी अपने साहित्य में स्वयं तीर्थराज थे। कविता की गंगा कथा साहित्य की यमुना एवं निबंध की सरस्वती तीनों का संगम उनकी कृतियों को त्रिवेणी के स्वरूप महत्व प्रदान करने वाला है।

हिंदी साहित्य जगत में निराला जी का गौरवपूर्ण स्थान है। साहित्य जगत में मुक्त छंद के प्रणेता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी है। महाप्राण निराला नवीनता के कवि है। अद्वितीय प्रतिभा के महान कवि है। जिनके कृतित्व में छायावादी और प्रगतिवादी दोनों युगों की विचारधाराओं का सुंदर समन्वय हैं। महान दार्शनिक, तत्वज्ञानी निराला जी अपने निराले व्यक्तित्व से हिंदी साहित्य जगत को जो निराला पथ दिखाया,निराला रूप दिया हिंदी साहित्य संसार अपनी इस निराले विभूति को कभी विस्मृत ना कर सकेगा। महाकवि निराला जी का निधन 15 अक्टूबर 1961 ईस्वी में रविवार को प्रयागराज इलाहाबाद में हुआ था।
निराला जी सच में अपराजित है और अमर भी है ऐसे राष्ट्रधर्मी ही महाकवि का अंत कभी हो ही नहीं सकता। जिसकी आत्मा में मां भारती और मां सरस्वती की मूर्ति विराजमान थी जैसा कि निराला जी ने स्वयं कहा है-

अभी न होगा मेरा अंत
अभी अभी ही तो आया है।
मेरे वन में मृदुल बसंत
अभी न होगा मेरा अंत।।
वसंत पंचमी जन्म जयंती पर महाप्राण निराला जी को शत् शत् नमन।

रविंद्र कुमार द्विवेदी
प्रधान सचिव
निराला साहित्य मंडल चांपा

News36garh Reporter

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