ऋतुराज आया है मनोहर
धरती पे छाई है रौनक़
मन बसंती हो गया है
माँ शारदे का रूप है मोहक
ऋतु शरद की आई विदाई
धरती माँ ले रही अंगड़ाई
पतझड़ का अबरुका सिलसिला
क्षितिज उत्तरायण सूर्य चलपड़ा
है पीतवर्ण शृंगार् धरा का
माँ शारदे ज्ञान प्रभा का
हस्त सुशोभित वीणा माँ के
ह्रदय प्रफुल्लित हुआ धरा का
वस्त्र पीताम्बरी किये है धारण
नव कोपल से करते स्वागत
माँ दे दो सृजन ज्ञान का अमृत
सयंम विवेक से हो पूर्ण मनोरथ
स्वरचित एवम् मौलिक(अप्रकाशित)
हिमांशु चतुर्वेदी”मृदुल”
कोरबा , छत्तीसगढ़
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