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नहाय खाय के साथ शुरू हुआ छठ महापर्व

सूर्योपासना का महापर्व छठ, आज 5 नवम्बर नहाय खाय के साथ प्रारंभ होगा l दिवाली के 6 दिन बाद मनाये जाने वाले इस पर्व की तैयारी तो दिवाली के बाद से ही शुरू हो जाती है l 4 दिनों की कठिन तपस्या का संकल्प नहाय खाय के साथ लिया जायेगा l इसके बाद खरना, संध्या अर्घ्य, प्रात:कालीन अर्घ्य के साथ 8 नवम्बर को समाप्त हो जाएगा।

छठ पूजा का हर रिवाज विशेष है l नहाय खाय जो की व्रत प्रारंभ करने का प्रतीक है, यह कोई सामान्य भोजन करने की प्रक्रिया नहीं है l इस दिन घर का शुद्धिकरण किया जाता है। इसके बाद छठ व्रती स्नान कर अलग कमरे में बिना बाहरी व्यक्ति की उपस्थिति के बिना शुद्ध वातावरण में भोजन का निर्माण करता है l भोजन में चावल के साथ लौकी की सब्जी, छोले और मूली आदि का सेवन करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य इस महाप्रसाद का सेवन करते हैं।

छठ पूजा वैसे तो उत्तर भारत का प्रमुख त्यौहार है लेकिन इस व्रत की महिमा का प्रभाव इतना है की देश ही नहीं विदेश में भी और धर्म सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर इसे मानने वाले है l मान्यता है की त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने छठ पूजा व्रत रखकर सूर्यदेव को अर्ध्य दिया था। षष्ठी माता संतान प्रदान करने वाली और सुख सौभाग्य देने वाली देवी के रूप में पूजी जाती है l

जानिए छठ पूजा की कथा –

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी l संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी l यज्ञ के दौरान, आहुति के लिए बनाई गई खीर रानी मालिनी को खाने को दी गई। खीर खाने से रानी गर्भवती हुईं और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन दुर्भाग्य से, बच्चा मृत पैदा हुआ।

राजा प्रियव्रत पुत्र के शव को लेकर श्मशान घाट गए और दुख में डूबकर अपने प्राण त्यागने ही वाले थे कि तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवी षष्ठी प्रकट हुईं। देवी ने राजा को षष्ठी व्रत करने को कहा l देवी षष्ठी के कहने पर, राजा प्रियव्रत ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को विधि-विधान से उनका व्रत किया। देवी की कृपा से, उन्हें जल्द ही एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा ने पुत्र को पुनः प्राप्त करने के बाद नगरवासियों को षष्ठी देवी का प्रताप बताया। तब से पष्ठी देवी की आराधना और उनके व्रत की शुरुआत हुई।

रामायण और महाभारत काल में भी छठ पूजा का वर्णन मिलता है

मान्यता है की रावण वध के बाद जब प्रभि श्री राम-जानकी और लक्ष्मण अयोध्या वापस लौटे तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी। इसके अलावा द्वापर युग में द्रौपदी ने भी अपने पतियों की रक्षा और खोया हुआ राजपाट वापस पाने के लिए षष्ठी का व्रत रखा था।

News36garh Reporter

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