रतनपुर संवाददाता – रवि परिहार
हिंदू धर्म में अक्षय नवमी का दिन बेहद ही शुभ माना गया है. इस दिन श्रीहरि विष्णु और शिव जी की पूजा करने का विधान है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. वहीं, इस दिन अक्षय नवमी की व्रत कथा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए.
मंगला गौरी मंदिर धाम में सामूहिक आंवला भोज आज
प्रति वर्षानुसार इस वर्ष भी 10 ऑक्टूबर को आंवला नवमी के शुभ अवसर पर विशाल सामूहिक आंवला भोज का आयोजन भोज का आयोजन किया जा रहा धाम के संस्थापक पंडित रमेश शर्मा ने इस अवसर पर इस दिन की महत्ता बताई है
आंवला नवमी के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, होगी मनचाहे फल की प्राप्ति!
हिंदू धर्म में अक्षय नवमी का दिन बेहद शुभ माना जाता है. यह पर्व अक्षय तृतीया के बराबर ही महत्वपूर्ण माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस दिन ही सतयुग की शुरुआत हुई थी. अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है और इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने की परंपरा है. आवंला नवमी के दिन लोग व्रत रखकर भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और भगवान शिव की पूजा करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन अक्षय नवमी की व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए, अन्यथा आवंला नवमी की पूजा अधूरी मानी जाती है.
आंवला नवमी के दिन भी बिना मुहूर्त देखे कोई नए कार्य की शुरुआत की जा सकती है. ऐसी मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन श्रीहरि की पूजा करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है. आज यानी 10 नवंबर को अक्षय नवमी का व्रत रखा जा रहा. अक्षय नवमी के दिन व्रत रखकर पूजा के दौरान कथा का पाठ करना जरूरी माना जाता है. कहते हैं कि व्रत कथा का वाठ किए बिना पूजा अधूरी रह जाती है. अगर आप चाहते हैं कि आपकी आंवला नवमी की पूजा पूर्ण हो जाए तो नीचे बताई गई व्रत कथा का पाठ अवश्य करें.
आंवला नवमी की व्रत कथा
शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक गांव में एक सेठ था. हर साल आंवला नवमी के दिन वह ब्राह्मणों को आंवले के पेड़ के नीचे बैठाकर भोजन कराया करता था. भोजन कराने के साथ ही सोना-चांदी आदि भेट में देता था. लेकिन यह सब करा सेठ के बेटों को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. ऐसे में सेठ के बेटे इस बात पर अपने पिता से झगड़ा करते थे. इन सब चीजों से तंग आकर सेठ ने अपना घर छोड़ दिया और दूसरे गांव में जाकर बस गया.
दूसरे गांव में बसने के बाद सेठ ने अपने जीवन यापन के लिए एक छोटी सी दुकान खोल ली. साथ ही, सेठ ने अपनी उस दुकान के आगे एक आंवले का पेड़ लगाया. भगवान की कृपा से वह दुकान बहुत अच्छी चलने लगी. इसके अलावा, वह सेठ अपने नियम को न तोड़ते हुए हर साल आंवला नवमी के दिन विधिवत पूजा करने के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराता था और दान देता था.
वहीं, दूसरी ओर सेठ के बेटों का सारा व्यापार ठप हो गया. ऐसे में सेठ के बेटों को समझ आया कि वे अपने पिता के भाग्य से ही खाते और कमाते थे. अपनी गलती समझ कर वे अपने पिता के पास गए और अपनी गलती की माफी मांगी. फिर पिता के कहने के बाद सेठ के पुत्रों ने भी आंवले के पेड़ की पूजा करनी शुरू की और दान-दक्षिणा करने लगे. इसके प्रभाव से सेठ के बेटों के घर पहले की तरह खुशहाली छा गई और वे सभी फिर से मिलकर सुख-समृद्धि के साथ रहने लगे.
अक्षय नवमी की कथा
अक्षय नवमी या आंवला नवमी से जुड़ी एक और कथा मिलती है. इस कथा के अनुसार, एक समय धन की देवी मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं. उस समय उन्होंने पृथ्वी पर देखा कि सभी लोग भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु की आराधना कर रहे हैं. यह देख उनके मन में भी दोनों देवताओं की पूजा करने का ख्याल आया. लक्ष्मी जी ने सोचा कि आखिर दोनों देवों की पूजा एक साथ कैसे की जाए? लक्ष्मी जी इस सोच-विचार में मग्न हो गईं.
कुछ पल बीतने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि धरती पर तो भगवान विष्णु और शिवजी को एक साथ केवल आंवले पेड़ के सन्मुख ही पूजा जा सकता है, क्योंकि सिर्फ आंवला में ही बेल और तुलसी दोनों के गुण मिलते हैं. इसके बाद लक्ष्मी जी ने आंवले के पेड़ के नीचे भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु की भावपूर्ण पूजा की. देवी लक्ष्मी की भक्ति देख श्री हरि और शिव जी प्रकट हो गए. इसके बाद मां लक्ष्मी ने आंवला पेड़ के पास भोजन पकाया और दोनों देवों को भोजन कराया.
ऐसा कहा जाता है कि तभी से हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर अक्षय नवमी मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु और देवों के देव महादेव की पूजा करने से जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही पूजा का दोगुना फल मिलता है. आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से सुख संपत्ति और आरोग्य की प्राप्ति होती है. साथ ही, इस दिन किया जाने वाला जप-तप और दान सभी पापों से मुक्ति दिलाता है.
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