जिला जांजगीर चांपा चांपा के ऐतिहासिक डोंगाघाट मंदिर परिसर में स्थित 72 साल पुराने अखाड़े को तोड़ने की घटना ने शहर में विवाद को जन्म दिया है। यह अखाड़ा न केवल क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक था, बल्कि पीढ़ियों से इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता रही है। लेकिन अखाड़े को तोड़ने के बाद इस मामले पर स्थानीय स्तर पर खबरें प्रकाशित न होने से कई सवाल उठ रहे हैं।
जानकारी के अनुसार, इस घटना की खबर को प्रकाशित न करने के लिए एक अनोखा प्रयास किया गया। चांपा लोभी संगठन है जो नाम ऊंचा है और काम इतना घटिया की कई पत्रकारों को चांदी के सिक्के देकर इस मामले को दबाने और खबर प्रकाशित न करने ऐवज में एक चांदी सिक्का दिया गया लेकिन कई ईमानदार पत्रकार जिससे लिया उसको वापस लौटा दिया यह कोशिश बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम सामने आ रहा जिसके ऊपर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए जिसने पत्रकारों को खरीदने की कोशिश की पहल किस उद्देशों की लेकिन वह व्यक्ति नाकाम साबित हो रहा और कई पत्रकारों ने इस प्रलोभन को ठुकरा दिया और विरोधस्वरूप वापस लौट आए।
इस घटना ने चांपा में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक संगठन पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए बनाए जाते हैं, लेकिन जब उन्हीं पत्रकारों को प्रलोभन दिया जाता है, और एक एक चांदी सिक्का में कई पत्रकारों बिक गया है आखिर तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात है।
इस घटना के बाद भी स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। अखाड़े को तोड़ने की अनुमति किसने दी? क्या इसके लिए किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया? ये सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। आखिर क्यों अभी तक कार्यवाही नहीं हुई है क्या बड़े नेता जी का फोन आया हुआ है कि कार्यवाही नहीं करने को या किसी का दबाव है तो ऐसा नेता को चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए अभी भी चांपा के जनता इंतजार कर रहे हैं आखिर कब पुलिस थाना आरोपियों के नाम से रिपोर्ट दर्ज हो
डोंगाघाट मंदिर परिसर से जुड़े श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों में इस घटना को लेकर गहरी नाराजगी है। वे इसे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अपमान मानते हैं।
डोंगाघाट मंदिर परिसर में 72 साल पुराने अखाड़े को तोड़ने और इसके बाद पत्रकारों को चुप कराने के प्रयास ने चांपा की सामाजिक और पत्रकारिक स्थिति पर एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। जनता की आवाज दबाने और सच्चाई को सामने आने से रोकने के लिए ऐसी रणनीतियां लोकतंत्र और पत्रकारिता के मूल्यों के खिलाफ हैं।
इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और पत्रकारिता को दबाने के प्रयासों की निंदा की जानी चाहिए। स्थानीय प्रशासन को इस विवाद में शामिल सभी पक्षों से जवाब लेनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
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