राजेन्द्र प्रसाद जयसवाल खास रिपोर्ट
त्रिस्तरीय भाजपा सरकार होने के बावजूद, एक मासूम बच्ची की मौत के बाद भी अब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होना पूरे तंत्र पर गहरा सवाल खड़ा करता है। जे.जी.एम. अस्पताल की लापरवाही से 15 मार्च को 1 साल 5 माह की अंशिका सार्वडिया की मौत हो गई। लेकिन घटना के 20 दिन से ज्यादा बीतने के बाद भी प्रशासन मौन है। यह चुप्पी केवल प्रशासन की असंवेदनशीलता नहीं, बल्कि सवाल खड़ा करती है कि क्या दोषियों को किसी नेता का संरक्षण प्राप्त है?
परिजनों ने बच्ची को शक्ति से चांपा लाकर इलाज कराया, लेकिन मुख्य चिकित्सक की गैरहाजिरी और बिना विशेषज्ञ की निगरानी ब्लड चढ़ाने जैसी घातक लापरवाही के चलते बच्ची की जान चली गई। डॉक्टर जब पहुंचे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। यह सिर्फ एक चिकित्सकीय चूक नहीं, बल्कि एक जीवन की बलि है।
अस्पताल के भीतर दो संदिग्ध दलालों की सक्रियता और उनका परिजनों को गुमराह कर वापस शक्ति भेजना – यह दर्शाता है कि अस्पताल के भीतर दलालों की घुसपैठ है और संभवतः उनके तार अस्पताल प्रशासन से जुड़े हैं। अगर यह आरोप सही है, तो यह सिर्फ चिकित्सा लापरवाही नहीं, बल्कि सुनियोजित अपराध है।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि घटना के इतने दिन बाद भी कलेक्टर, एसडीएम और एसपी ने अब तक किसी भी डॉक्टर, स्टाफ या दलाल पर कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या दोषी इतने ताकतवर हैं कि प्रशासन उनके खिलाफ कदम नहीं उठा पा रहा? या फिर प्रशासन किसी “ऊपर” के इशारे का इंतजार कर रहा है?
आज अंशिका गई है, कल किसी और की बारी हो सकती है। यह लड़ाई सिर्फ एक परिवार की नहीं है, बल्कि हर उस नागरिक की है जो सरकारी अस्पतालों पर भरोसा करता है। यदि इस घटना पर सख्त कार्रवाई नहीं होती, तो यह नजीर बन जाएगी कि सिस्टम के भीतर रहकर कोई भी मासूम की जान ले सकता है और फिर राजनीतिक संरक्षण में बच सकता है।
यदि शीघ्र दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, तो नागरिक समाज, पत्रकार संघ, सामाजिक संगठन और जनप्रतिनिधि मिलकर आंदोलन की राह पर उतरेंगे। यह आंदोलन केवल अंशिका के लिए नहीं, बल्कि हर उस परिवार के लिए होगा जो इस लचर स्वास्थ्य तंत्र का शिकार बना है।
मासूम अंशिका अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी मौत को यूं अनदेखा करना पूरे समाज के मुंह पर तमाचा है। अब वक्त है कि जनता, मीडिया और सामाजिक संगठनों की आवाज बुलंद हो, ताकि न्याय की नींव फिर से मजबूत हो सके।
अंशिका सिर्फ एक बेटी नहीं थी – वह हर मां-बाप की उम्मीद थी। इंसाफ अब भी नहीं मिला तो ये समाज और तंत्र, दोनों के लिए सबसे बड़ा कलंक होगा।
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