जांजगीर-चांपा संवाददाता – राजेन्द्र जायसवाल
प्रतिबंधित लाल ईंट के काले कारोबार जोरो पर
जांजगीर-चांपा। जिले के बम्हनिंडीह ब्लॉक अंतर्गत ग्राम कनकपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रतिबंधित लाल ईंटों का अवैध कारोबार इस समय अपने चरम पर है। शासन और प्रशासन की चुप्पी ने इस अवैध धंधे को खुलेआम चलने की खुली छूट दे रखी है। जहां एक ओर पर्यावरणीय नियमों का घोर उल्लंघन हो रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकारी राजस्व को भी करोड़ों की चपत लग रही है।
20 से अधिक अवैध भट्टे – बिना अनुमति, बिना डर:
कनकपुर क्षेत्र में 20 से अधिक ईंट भट्ठों का संचालन किया जा रहा है, जिनमें से अधिकतर के पास न तो कोई वैध लाइसेंस है और न ही पर्यावरण विभाग की अनुमति। ऐसे में सवाल उठता है कि इन भट्टों को चलाने की छूट कैसे मिल रही है? क्या यह सब कुछ प्रशासन की जानकारी में नहीं हो रहा या फिर जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है?
प्राकृतिक संसाधनों की लूट और पर्यावरणीय विनाश:
ईंट निर्माण के लिए भारी मात्रा में मिट्टी और पानी की आवश्यकता होती है। यहां बोरवेल और तालाबों से अवैध रूप से पानी निकाला जा रहा है, जिससे क्षेत्र में जलस्तर तेजी से गिर रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि गर्मियों में पीने तक का पानी मुश्किल से मिल रहा है, लेकिन प्रशासन मौन है।
मजदूरों का शोषण और श्रम कानूनों की अवहेलना:
इन ईंट भट्ठों में कार्यरत मजदूरों का न तो पंजीकरण किया गया है और न ही उन्हें किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा सुविधा दी जा रही है। मजदूर कल्याण अधिनियमों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन मज़दूरों की चीखें व्यवस्था के बहरे कानों तक नहीं पहुंच रही हैं।
कर चोरी से करोड़ों का नुकसान:
ईंटें खुलेआम बेची जा रही हैं — प्रति दो हजार ईंटें 10,000 रुपये में — लेकिन कोई भी संचालक न तो जीएसटी अदा कर रहा है और न ही किसी प्रकार का सरकारी कर। यह न केवल गंभीर आर्थिक अपराध है बल्कि यह सरकारी व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है।
राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक लापरवाही:
जब पत्रकारों ने भट्ठा संचालकों से इस विषय में बात करनी चाही तो उन्हें धमकाने की कोशिश की गई। खुलेआम यह कहा गया कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। खनिज अधिकारी फोन नहीं उठाते और तहसीलदार की ओर से प्रतिक्रिया केवल शिकायत आने की स्थिति पर टिकी है।
क्या अब भी चुप रहेगा प्रशासन?
इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या शासन-प्रशासन इस खबर के बाद चेतेगा? या फिर इस अवैध व्यापार पर भी वही सियासी पर्दा डाला जाएगा, जो अब तक कई मामलों में देखा गया है?
पूरे तंत्र की नाकामी और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गई है।
लाल ईंट की यह कालिख अब सिर्फ ईंट भट्ठों तक सीमित नहीं रही, यह पूरे तंत्र की नाकामी और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गई है। शासन अगर अब भी नहीं जागा, तो आने वाले दिनों में केवल पर्यावरण और राजस्व का ही नहीं, जनविश्वास का भी ह्रास होना तय है।
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