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वर्ल्ड वॉइस डे: मनुष्य के जीवन रूपी चित्र पर रंग भरती अभिव्यक्ति आवाज ही तेरी पहचान है

मनुष्य के जीवन रूपी चित्र पर रंग भरती है अभिव्यक्ति. जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक हर चीज़ की अभिव्यक्ति के विभिन्न साधन मनुष्य के पास हैं, लेकिन जीवन का सबसे पहला अभिव्यक्ति का साधन को मनुष्य को मिला है, वह है आवाज़. जन्म लेने के बाद जब एक नवजात, भाषा और संवाद से परिचित नहीं होता है, तब भी वह अपने रुदन से अपने पालक तक अपनी ज़रुरत या भावों की अभिव्यक्ति करने में सक्षम होता है. यानी आवाज़ की महत्ता हमारे जीवन में बहुत ज़्यादा है. इसलिए हर साल 16 अप्रैल को वर्ल्ड वॉइस डे के रूप में मनाया जाता है.

आवाज़ के लिए हर साल 16 अप्रैल को एक विशेष दिन चुनने का विचार सबसे पहले 1999 में पहली बार सोसाइटी ऑफ लारेंजोलॉजी एंड वॉयस द्वारा ब्राजील में प्रस्तुत किया गया था. 2002 में, यूरोपियन लैरिंजोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष, पुर्तगाली भाषाविद् प्रोफ़ेसर मारियो आंद्रे ने सुझाव दिया कि पूरे विश्व में लोगों को विश्व आवाज़ दिवस मनाना चाहिए. वर्ल्ड वॉइस डे का उद्देश्य दुनियाभर में लोगों के रोज़मर्रा के जीवन में आवाज़ की महत्ता पर रौशनी डालना है. आवाज़ संवाद का एक सशक्त माध्यम है. WVD सारे विश्व में आवाज़ की कलात्मकता के प्रशिक्षण और उससे जुड़ी चुनौतियों को दूर करने के प्रति जागरूकता फ़ैलाने का काम करता है. इसके साथ ही आवाज़ के अलग-अलग प्रयोगों को लेकर जागरूकता फ़ैलाने का काम भी करता है.

इसका उद्देश्य सिर्फ कलात्मक रूप से अभिव्यक्ति के लिए जागरूक करना ही नहीं बल्कि आवाज़ से जुड़ी व्याधियों के लिए चिकित्सा संभावना खोजना भी है. कई जगहों पर इस दिन इएनटी विभाग द्वारा आवाज़ से सम्बंधित बीमारियों की मुफ्त जांच भी की जाती है. यह दिन लोगों को आनंद या व्यवसाय के लिए अपनी आवाज़ का उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित करता है. वे यह जान सकते हैं कि वह किस प्रकार अपनी आवाज़ की देखभाल की जा सकती है, और इसे इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षण लिया जा सकता है. आवाज़ का प्रयोग मूल रूप से जीव विज्ञान, कला, स्वर विज्ञान, मनोविज्ञान, भौतिकी, संगीत, भाषण-भाषा विकृति विज्ञान और चिकित्सा के लिए किया जाता है.

 

आवाज़ हमारे जीवन में अनेक रंग भर सकती है. आवाज़ ही हमारे संचार का वह माध्यम बनी जिसके द्वारा गुरुकुलों में शिक्षा प्रदान की जाती थी. यज्ञ एवं अनुष्ठानों में आवाज़ द्वारा ही मंत्रोच्चारों का महत्त्व रहा है. उन मंत्रों के उच्चारण से जो स्पंदन उत्पन्न होता है वह हमारे आसपास की ऊर्जा को सकारात्मक बनाती है. यह ध्वनि के सिद्ध मंत्र थे जो हमारी ऋषि परंपरा से चल कर आज तक हमारे लिए एक सबल वैज्ञानिक आधार रखते हैं.

 

यही आवाज़ नाटकों और अलग-अलग प्रर्शनकारी कलाओं में भिन्न-भिन्न रूपों में इस्तेमाल होने लगी. आवाज़ ही गीतों के बोल को कलात्मक रूप से व्यक्त कर सुरीला बनाती है. एक वॉइस ओवर कलाकार अपने शब्दों को अभिव्यक्त करने की कला से किसी कहानी के भावों को सुनने वाले तक सटीक पहुंचा सकता है, या मात्र अपनी अभिव्यक्ति की कला से किसी कहानी के भावों को अपने अंदाज़ में कहकर उसका भाव बदल सकता है जो फोनेटिक्स या स्वर विज्ञान का हिस्सा होती है.

 

आवाज़ ही तनाव, बेचैनी, डिप्रेशन, अनिद्रा व अन्य मानसिक स्वास्थ से जुड़ी परेशानियों की थेरेपी में उपयोग में ली जाती हैं. यह आवाज़ का ही असर है कि प्रभावी भाषण देने वाले एक व्यक्ति से हज़ारों की भीड़ सम्मोहित हो जाती है, जिसके सबसे बड़े उदाहरण स्वामी विवेकानंद हैं, जिन्होंने अपनी आवाज़ का इस प्रकार प्रयोग किया था कि विदेश जा कर जिन लोगों ने उन्हें उपेक्षा की नज़रों से देखा था वे भी उनके भाषण को सुन मंत्रमुग्ध हो गए थे.

 

आवाज़ के जादू की बात करें तो रेडियो जगत का ज़िक्र किये बिना इसे अधूरा ही माना जायेगा. आज हम सभी के घरों में टेलीविज़न को प्रमुख स्थल मिल चुका है. लेकिन एक समय था जब रेडियो ही हर समाचार से लेकर मनोरंजन का साधन था. भारत की आज़ादी के बाद 1951 में रेडियो जगत में एक ऐसे शख्स का प्रवेश हुआ जो सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि एशिया में भी अपनी आवाज़ के लिए पहचाना गया, जिसका नाम था अमीन सायानी, उनका प्रोग्राम ‘बिनाका गीतमाला’ काफी मशहूर हुआ.

 

अपने जीवन में उन्होंने लगभग 54,000 रेडियो प्रोग्राम और 19,000 जिंगल में आवाज़ दी. यह उनकी आवाज़ का ही हुनर था जिसने उन्हें कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचाया. इसी प्रकार आवाज़ की दुनिया के एक और सितारे हैं – चेतन शशितल जिन्हें अपनी ध्वनि-अभिनय की विशेषज्ञता के कारण ‘द बिग सी’ के नाम से भी जाना जाता है. चेतन शशितल किसी भी इंसान की आवाज़ को हूबहू अभिव्यक्त करने के लिए प्रसिद्द हैं. उनका वॉइस मॉडुलेशन के ऊपर नियंत्रण ग़ज़ब का है.

 

उन्होंने विज्ञापनों से लेकर कार्टून और फिल्मों के किरदारों के लिए अपनी आवाज़ दी है. इन्होंने अंग्रेज़ी फिल्मों के हिंदी रूपांतरों में भी कई किरदारों को आवाज़ दी. कुछ फिल्मों में इन्होंने अभिनेताओं की उपलब्धता न होने के कारण उनके आवाज़ों की नक़ल कर इस प्रकार आवाज़ दी कि उन्हें कोई भी वास्तविक से अलग नहीं बोल सकता था.

 

आवाज़ की बात करें तो ‘किनारा’ फिल्म में लता मंगेशकर द्वारा गाया यह गीत अनायास ही याद आता है. संगीत में आवाज़ की महत्ता सिर्फ लता मंगेशकर जैसी कुछ दिग्गज कलाकारों से ही समझी जा सकती है. एक सुन्दर सुरीली आवाज़ में गाया गीत न सिर्फ हमारे कानों को बल्कि हमारे मन को भी राहत और शांति पहुंचता है.

 

शब्दों को सुरों में ढाल कर अभिव्यक्त करने से उनके मायने जैसे सीधे ज़हन में उतरते हैं. किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर व कई समकालीन गायक लाखों करोड़ों लोगों के भावों की अभिव्यक्ति का जरिया बने हैं जिन्होंने अपनी आवाज़ से न सिर्फ उनके दिलों को छुआ बल्कि हमेशा के लिए अमर हो गए.

 

आवाज़ दुनिया बदलने की ताकत रखती है. हर क्रांति की शुरुआत आवाज़ उठाने से ही हुई है, और जितनी सशक्त आवाज़ हुई है उतनी ही तेज़ी से वह बदलाव भी लायी है. कुदरत से मिली इस नेमत को यूं ही ज़ाया तो नहीं किया जा सकता. आइये 16 अप्रैल के बहाने एक बार फिर आवाज़ों की दुनिया में लौटकर महसूस करें कि गर ये न होती तो हमारी दुनिया कैसी होती. इसीलिए कहा गया है आवाज़ें कभी मरती नहीं.

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News36garh Reporter

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