आज 6 जुलाई को हम भारत माता के सपूत, महान राष्ट्रभक्त और दूरदर्शी नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उन्होंने न केवल शिक्षा, राजनीति और समाज सेवा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया, बल्कि भारत की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी एक प्रसिद्ध शिक्षाविद् और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति थे। श्यामा प्रसाद ने भी शिक्षा में अद्भुत योग्यता दिखाई। उन्होंने 23 वर्ष की आयु में कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और फिर इंग्लैंड से बार-एट-लॉ की डिग्री ली।
शिक्षा के क्षेत्र में योगदान:
डॉ. मुखर्जी 33 वर्ष की उम्र में ही कोलकाता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति बने। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय ने शैक्षणिक सुधारों की दिशा में कई कदम उठाए। वे मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण भी होना चाहिए।
राजनीतिक जीवन:
डॉ. मुखर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से की, लेकिन जल्द ही वे राष्ट्रवादी विचारों के साथ हिंदू महासभा में सक्रिय हो गए। स्वतंत्रता के बाद वे पंडित नेहरू की अंतरिम सरकार में उद्योग और आपूर्ति मंत्री बने, लेकिन कश्मीर नीति और अनुच्छेद 370 के विरोध में उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
जनसंघ की स्थापना:
1951 में डॉ. मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के रूप में विकसित हुई। उनका नारा “एक देश में दो प्रधान, दो निशान, दो विधान नहीं चलेंगे” आज भी देशभक्ति का प्रतीक है।
कश्मीर मुद्दे पर बलिदान:
1953 में डॉ. मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर में विशेष दर्जे (अनुच्छेद 370) के खिलाफ आंदोलन किया। बिना परमिट के कश्मीर में प्रवेश करने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के कुछ ही दिनों बाद, 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। आज भी उनके बलिदान को भारत की अखंडता के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है।
डॉ. मुखर्जी का दृष्टिकोण:
भारत की एकता और अखंडता के प्रबल समर्थक
स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के पक्षधर
शिक्षा को राष्ट्रीय चरित्र निर्माण से जोड़ने वाले
लोकतंत्र और विचारों की स्वतंत्रता के समर्थक
आज के संदर्भ में प्रासंगिकता:
आज जब भारत आत्मनिर्भरता, एकता और वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर है, डॉ. मुखर्जी के विचार और आदर्श और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है, और इसके लिए विचार, संघर्ष और बलिदान – सभी आवश्यक हैं।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने जीवन को भारत माता के चरणों में अर्पित कर दिया। वे एक नेता नहीं, एक विचारधारा थे।
आज उनकी जयंती पर हम सबका कर्तव्य है कि उनके बताए मार्ग पर चलें और भारत को एकता, शक्ति और गौरव की दिशा में आगे बढ़ाएं।
“श्यामा प्रसाद नहीं सिर्फ नाम नहीं है, यह एक चेतना है, एक प्रेरणा है, एक युगदृष्टा की अमर आवाज़ है।”









