देश में 1 जुलाई 2017 को जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य टैक्स व्यवस्था को एकसमान और सरल बनाना था। लेकिन समय के साथ इसमें इतनी जटिलताएं जुड़ गईं कि अब इसे फिर से सुधारने की ज़रूरत महसूस की जा रही है।
अब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने GST में सुधार के एक बड़े प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। यह प्रस्ताव संसद के मानसून सत्र के बाद अगस्त में होने वाली GST काउंसिल बैठक में पेश किया जाएगा।
क्या है ‘रेट रेशनलाइजेशन’ योजना?
वित्त मंत्रालय टैक्स सिस्टम को सरल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है, जिसे रेट रेशनलाइजेशन कहा जा रहा है। इसके तहत वर्तमान टैक्स स्लैब्स की समीक्षा की जा रही है।
वर्तमान GST स्लैब्स:
- स्लैब दर वस्तुओं का प्रतिशत मुख्य श्रेणियाँ
- 0% – जरूरी वस्तुएं, किताबें
- 5% 21% खाद्य सामग्री, सामान्य उपभोग
- 12% 19% घरेलू वस्तुएं
- 18% 44% (सबसे ज्यादा) इलेक्ट्रॉनिक्स, सर्विसेज
- 28% 3% लक्ज़री और सिन टैक्स सामान
हट सकता है 12% स्लैब?
नए प्रस्ताव में 12% टैक्स स्लैब को खत्म करने की बात है। इसमें आने वाली वस्तुएं या तो 5% या 18% स्लैब में डाली जा सकती हैं। इससे टैक्स सिस्टम ज्यादा सीधा और पारदर्शी होगा। साथ ही, सरकार को स्थिर टैक्स कलेक्शन में भी मदद मिलेगी।
क्या होगा आम लोगों और कारोबारियों पर असर?
अगर वस्तुएं 5% स्लैब में जाती हैं:
1. ज़रूरी चीजें सस्ती हो सकती हैं
2.आम लोगों की जेब को राहत
अगर अधिकांश वस्तुएं 18% में जाती हैं:
1. महंगाई बढ़ सकती है
2. खर्च में इज़ाफा
साथ ही, टैक्स फाइलिंग और चालान प्रक्रिया को भी आसान करने की योजना है — जिससे खासतौर पर MSMEs को राहत मिल सकती है।
मुआवजा उपकर (Cess) रहेगा जारी
GST के लागू होने पर कुछ खास उत्पादों पर अतिरिक्त सेस लगाया गया था, ताकि राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई की जा सके। इसे पहले जून 2022 तक समाप्त करना था, लेकिन कोविड के चलते केंद्र सरकार ने कर्ज लेकर उसे आगे बढ़ाया। अब यह मार्च 2026 तक जारी रहेगा।
क्यों जरूरी हो गया है यह बदलाव?
1 .अधिक टैक्स स्लैब होने से कंफ्यूजन बढ़ा।
2. छोटे व्यापारियों के लिए जीएसटी का पालन करना हुआ मुश्किल।
3. उद्योगों और उपभोक्ताओं के बीच टैक्स को लेकर भ्रम बना रहता है।
4. विवाद और अनिश्चितता के कारण टैक्स मामलों में जटिलता बढ़ी है।









