Home चर्चा में शिरोमणि माथुर की कविता में छलका बस्तर का दर्द

शिरोमणि माथुर की कविता में छलका बस्तर का दर्द

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-नक्सलवाद और पिछड़ेपन का दंश झेल रहे बस्तर की वेदना है कविता में =

अर्जुन झा/जगदलपुर। बस्तर संभाग नक्सलवाद से बुरी तरह ग्रस्त है। अब तक लाखों निरीह लोग इसके कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। यहां नक्सलवाद से लड़ते हुए पुलिस और सुरक्षा बलों के हजारों जवान और अधिकारी अपने प्राणों का बलिदान दे चुके हैं। इस व्यथा और वेदना पर दल्ली राजहरा की वरिष्ठ कवियित्री एवं समाजसेविका श्रीमती शिरोमणि माथुर ने एक ऎसी कविता रची है, जो खूब सुर्खियां बटोर रही है।

बस्तर की त्रासदी को लेकर बस्तर की आवाज शीर्षक वाली कविता में अपने दिल की वेदना व्यक्त डॉ. शिरोमणि माथुर ने व्यक्त की है। बस्तर में पनपते माओवाद और बस्तर के सामाजिक जीवन पर उसके दुष्प्रभाव को करीब 50 वर्ष से देखती, सुनती और पढ़ती आईं डॉ. शिरोमणि माथुर ने इस पर अपनी वेदना कविता के रूप में प्रस्तुत की है। बस्तर की आवाज शीर्षक उमकी कविता की पहली पंक्ति- “बहुत तड़पते बस्तरवासी, सुनिए अब उनकी आवाज” से ही जाहिर हो जाता है कि बस्तर के बाशिंदों को इन वर्षों के दौरान कितनी मुसीबतें झेलनी पड़नी हैं और ऐसे हालातों को देखकर डॉ. शिरोमणि माथुर का मन किस कदर व्यथित हो उठा है। उनकी कविता कुछ इस तरह है –


डॉ. शिरोमणि माथुर की यह रचना निसंदेह हर बस्तरवासी की पीड़ा को महसूस कराती है। यह कृति अब बस्तर में लोकप्रिय होती जा रही है और जन जन की आवाज भी बनती जा रही है।

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